Wednesday 30 November 2011

मेरे कुछ शेर....


वो निगाहों से मेरे होश लिए जाते है..
और अदाओं से बेहोश किये जाते है...
..रमेश शर्मा..
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जिसने वफ़ा के नाम पर सब कुछ लुटा दिया
तुमने उसी के नाम को दिल से हटा दिया....
...रमेश शर्मा..
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चोट सीने पे खुद लगाई है
मौअत आई नहीं बुलाई है
..रमेश...
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हकीकत कर तो दूं बयां अपनों से मै
दूर हो न जाऊ , कहीं अपनों से मै
...रमेश शर्मा..
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इश हवा के रूख पे तू न जा ओ नादाँ
मौषम बदला की रुख बदल जायेगा.
...रमेश शर्मा...
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वक्त से रहम की भीख लेने वाले..
अपने कर्मों का बैठ के हिसाब तो कर..
...रमेश...
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चाहने वाले मुझे अब गैर समझते क्यों है.
मेरे अपने मेरे किरदार से डरते क्यों है
मशविरा मेरा जो हर बात पे लेते थे कभी
अब मेरी बात को उल्टा वो समझते क्यों है
...रमेश शर्मा..
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वक्त की बात है मै जिनको नजर आा था.
वक्त की बात है वो मुझको नजर आते है
...रमेश शर्मा..
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मेरी यादों पे उनके पहरे हो गए.
जख्म दिल के और गहरे हो गए.
..रमेश शर्मा..
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तेरी चाहत में हुवे हम भी दिवाने इतने.
तुझसे मिलने के बनाये है बहाने कितने.
..रमेश शर्मा..
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वक्त के साथ ही अंदाज बदल जाते है.
आँखों के चश्मे कई बार बदल जाते है...
. ..रमेश शर्मा
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वो मुसीबत में मुझे छोड़ चले जाते है.
एक साया है कि चिपके है बदन से अब भी
. ..रमेश शर्मा
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शरमा के हमने एक दिन सुरमा लगा लिया .
लोगों ने मेरे नाम में "शर्मा" लगा दिया.
. ..रमेश शर्मा
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जख्मे जिगर की तू कभी नुमाइश तो कर .
मरहम के खातिर हमसे गुजारिश तो कर  ..
..रमेश शर्मा..
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वो जो मेरे नाम से मुह फेर लिया करते थे...
आज दीदार को मेरे ,बेचैन हुवे जाते है...
..रमेश शर्मा..
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वक्त रहते नहीं संभला, तो तू क्या संभला
तुझको नादान कहूं , या मै कहूं पगला.
...रमेश शर्मा..
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इश्क के सौदे का कब हिसाब होता है
इश्क में खतरा भी बेहिसाब होता है .
.रमेश शर्मा.
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मेरे अपने ही मुझे ,जख्म दिए जाते है.
कितने मजबूर है हम फिर भी जिए जाते है.
..रमेश शर्मा ...
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मेरे शेरों की जो तौहीन किया करते थे..
उन्ही शेरों पे उन्हें आज गुमाँ होता है .
..रमेश शर्मा..
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अपने सीने का वो हर राज दिए जाते है.
इश तरह प्यार का इजहार किये जाते है..;.
...रमेश शर्मा ...
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जर्रा हूँ बुलंदी की ख्वाहिश मै क्यूं करूँ.
हीरे को चमकने की नुमाइश मै क्यूं करू.
...रमेश शर्मा...
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खामं खां क्यों हाथों में किताब लिए बैठा है.
वक्त खुद ही हर जुर्म का हिसाब किये बैठा है
....रमेश शर्मा..
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पानी में, मगर से, भला मै बैर क्यों करूं
वो नाव जिसमे छेद हो ,मै सैर क्यों करूं.
....रमेश शर्मा...
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कोई कांटा मेरे सीने में उतर जाता है
बेवफा मुझको , मेरा यार नजर आता है,
जिंदगी मैंने गुजारी है जिनकी पलकों पर ,
उन्ही पलकों पे कोई और नजर आता है.
...रमेश शर्मा..


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