Monday 27 February 2017

प्यारा अपना गाँव !


खेत मेढ कच्ची सड़क,पीपल की वो छाँव ! 
खोकर खुद ही खोजता,प्यारा अपना गाँव !!
दिनभर खेले धूप में,….. दौड़े नंगे पाँव ! 
उस बचपन की याद है, प्यारा अपना गाँव !!
बढे शहर की ओर अब,पढ़े लिखों के पाँव !
सूना सूना हो गया ,..प्यारा अपना गाँव !!
रहा नहीं वो गाँव अब , रहे नहीं वे लोग !
मित्र आज देहात को, लगा शहर का रोग !!
नहीं बेचना भूलकर,अपने सिर की छाँव ।
पड जाये कब लौटना, महानगर से गाँव! !
रमेश शर्मा.