वो निगाहों से मेरे होश लिए जाते है.. |
और अदाओं से बेहोश किये जाते है... |
..रमेश शर्मा.. |
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जिसने वफ़ा के नाम पर सब कुछ लुटा दिया |
तुमने उसी के नाम को दिल से हटा दिया.... |
...रमेश शर्मा.. |
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चोट सीने पे खुद लगाई है |
मौअत आई नहीं बुलाई है |
..रमेश... |
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हकीकत कर तो दूं बयां अपनों से मै |
दूर हो न जाऊ , कहीं अपनों से मै |
...रमेश शर्मा.. |
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इश हवा के रूख पे तू न जा ओ नादाँ |
मौषम बदला की रुख बदल जायेगा. |
...रमेश शर्मा... |
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वक्त से रहम की भीख लेने वाले.. |
अपने कर्मों का बैठ के हिसाब तो कर.. |
...रमेश... |
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चाहने वाले मुझे अब गैर समझते क्यों है. |
मेरे अपने मेरे किरदार से डरते क्यों है |
मशविरा मेरा जो हर बात पे लेते थे कभी |
अब मेरी बात को उल्टा वो समझते क्यों है |
...रमेश शर्मा.. |
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वक्त की बात है मै जिनको नजर आा था. |
वक्त की बात है वो मुझको नजर आते है |
...रमेश शर्मा.. |
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मेरी यादों पे उनके पहरे हो गए. |
जख्म दिल के और गहरे हो गए. |
..रमेश शर्मा.. |
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तेरी चाहत में हुवे हम भी दिवाने इतने. |
तुझसे मिलने के बनाये है बहाने कितने. |
..रमेश शर्मा.. |
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वक्त के साथ ही अंदाज बदल जाते है. |
आँखों के चश्मे कई बार बदल जाते है... |
. ..रमेश शर्मा |
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वो मुसीबत में मुझे छोड़ चले जाते है. |
एक साया है कि चिपके है बदन से अब भी |
. ..रमेश शर्मा |
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शरमा के हमने एक दिन सुरमा लगा लिया . |
लोगों ने मेरे नाम में "शर्मा" लगा दिया. |
. ..रमेश शर्मा |
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जख्मे जिगर की तू कभी नुमाइश तो कर . |
मरहम के खातिर हमसे गुजारिश तो कर .. |
..रमेश शर्मा.. |
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वो जो मेरे नाम से मुह फेर लिया करते थे... |
आज दीदार को मेरे ,बेचैन हुवे जाते है... |
..रमेश शर्मा.. |
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वक्त रहते नहीं संभला, तो तू क्या संभला |
तुझको नादान कहूं , या मै कहूं पगला. |
...रमेश शर्मा.. |
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इश्क के सौदे का कब हिसाब होता है |
इश्क में खतरा भी बेहिसाब होता है . |
.रमेश शर्मा. |
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मेरे अपने ही मुझे ,जख्म दिए जाते है. |
कितने मजबूर है हम फिर भी जिए जाते है. |
..रमेश शर्मा ... |
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मेरे शेरों की जो तौहीन किया करते थे.. |
उन्ही शेरों पे उन्हें आज गुमाँ होता है . |
..रमेश शर्मा.. |
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अपने सीने का वो हर राज दिए जाते है. |
इश तरह प्यार का इजहार किये जाते है..;. |
...रमेश शर्मा ... |
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जर्रा हूँ बुलंदी की ख्वाहिश मै क्यूं करूँ. |
हीरे को चमकने की नुमाइश मै क्यूं करू. |
...रमेश शर्मा... |
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खामं खां क्यों हाथों में किताब लिए बैठा है. |
वक्त खुद ही हर जुर्म का हिसाब किये बैठा है |
....रमेश शर्मा.. |
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पानी में, मगर से, भला मै बैर क्यों करूं |
वो नाव जिसमे छेद हो ,मै सैर क्यों करूं. |
....रमेश शर्मा... |
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कोई कांटा मेरे सीने में उतर जाता है |
बेवफा मुझको , मेरा यार नजर आता है, |
जिंदगी मैंने गुजारी है जिनकी पलकों पर , |
उन्ही पलकों पे कोई और नजर आता है. |
...रमेश शर्मा.. |
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