दोहे रमेश के
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चरण वन्दना से करूँ,शुरूआत मैं आज !
गुरु प्रताप से ही बने, मेरे सारे काज ||
स्वागत है गुरुदेव का, दिल में सौ-सौ बार |
विद्या का जिनसे मिला,मुझे श्रेष्ठ उपहार ||
मेरी है शुभकामना, जियें साल सौ आप |
जीवन यह चलता रहे, होता रहे मिलाप ||
सरस्वती से हो गया ,तब से रिश्ता खास !
बुरे वक्त में जब घिरा,लक्ष्मी रही न पास !!
जिसको देखो कर रहा, हरियाली काअंत !
आँखें अपनी मूँद कर, रोये आज बसंत !
पुरवाई सँग झूमती,.. शाखें कर शृंगार !
लेती है अँगडाइयाँ ,ज्यों अलबेली नार !!
आई है ऋतु प्रेम की,..... आया है ऋतुराज !
बन बैठी है नायिका ,सजधज कुदरत आज !!
सर्दी-गर्मी मिल गए , बदल गया परिवेश !
शीतल मंद सुगंध से, महके सभी "रमेश" !!
थी कोसों की दूरियाँ, मगर लगी वो पास !
शायद कहते हैं इसे, प्यार भरा अहसास !!
रहा नहीं वो गाँव अब , ..रहे नहीं वे लोग !
मित्र आज देहात को, लगा शहर का रोग !!
चढ़े खिलौनों के जहाँ, ...आसमान में भाव !
निर्धन ने तैयार की, फिर कागज़ की नाव !!
सच्चाई का इक दफा, लिया हाथ जो थाम !
उसका सारी उम्र फिर,.. पड़े चुकाना दाम !!
टनों लकडियाँ फूँक दी,किॆए कई अभिषेक !
नही लगाया आपने,.... वृक्ष कभी पर एक !!
अपने जीवन काल में, करो काम इक नेक !
जन्मदिवस पर तुम स्वयं ,वृक्ष लगाओ एक !!
सभी खड़े इक नाव पर, थाम झूठ का हाथ !
गलती का यह ठीकरा ,फोड़ें किसके माथ !!
किया अकारण जल अगर, इस पीढ़ी ने व्यर्थ !
कल होगा सूखा यहाँ,..... होगा बड़ा अनर्थ !!
बेहूदा बातें कहीं, .........बोली तुच्छ जुबान !
वतन परस्ती से विलग,जब-तब दिए बयान !!
बुरा रोग संदेह का, छीने चैन करार !
मिट जाती हैं जिंदगी,पटती नही दरार !!
बिगडें सदा किसान के,......अनायास हालात !
पकी फसल पर जब कभी, गिर जाये बरसात !!
कहने को तो देश है,..अपना कृषक प्रधान!
क्यों मरते हैं भूख से,फिर भी यहाँ किसान! !
मेरी सच्ची बात का ,.......ऐसा मिला इनाम !
कुछ ने आँखे फेर ली, कुछ ने किया प्रणाम !!
कर्मों का हो आइना, सम्मुख सदा "रमेश"!
देने से पहले कहीं, .......कोई भी उपदेश !!
शायर है गुमनाम औ,..... गीतकार अज्ञात !
गायक गा गाकर जिन्हें, हुए विश्व विख्यात !!
उसकी चुप्पी से बचो, जन पाओ गुणवान ।
मीठी बातों से डरो , बतलाती अज्ञान ।।
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ऊँचे पद से हो नही, कभी बड़ा इंसान |
उसकी अपनी खूबियाँ, करती उसे महान ॥
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फितरत यही जमीन की, लेती सब कुछ सोख!
धर्म निभाती नारि का, धरती माँ की कोख!.
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पाप-पुण्य बिन भेद के, धरती माँ की कोख |
देती जीवनधन सदा, धरती माँ की कोख ।
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उसकी चुप्पी से बचो, जन पाओ गुणवान ।
मीठी बातों से डरो , बतलाती अज्ञान ।।
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ऊँचे पद से हो नही, कभी बड़ा इंसान |
उसकी अपनी खूबियाँ, करती उसे महान ॥
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जीवन मे उपलब्धियां, देती उच्च मुकाम!
होनहार संतान से, होता जग में नाम ॥
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माँ को ही गर दे दिया, उसने उलट जवाब I
तो फिर उसका व्यर्थ है, पढ़ना चार किताब II
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गुस्सा हरदम स्वास्थ का, करता है नुकसान I
गाँठ बाँध लो आज से, सदा रखेंगे ध्यान II
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चाहे रहे गरीब वो,चाहे रहे कुलीन !
दो गज ही मिलती सदा,जाते समय जमीन
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इत देखूं किरदार या, उत देखूं परिवार /
दोनों जीवन की धुरी, दोनों से संसार //
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किसी विवादित बात पर, बढ़ता जब उन्माद |
सा रे गा मा पा नहीं, गूँजे वहाँ निषाद |
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दूध दही घी छाछ सब, उसके स्वास्थ्य सहाय।
जिसके द्वारे नित्य ही, रम्भाये इक गाय ।।
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अगर करोगे स्वार्थ वश,कभी किसी से प्रीत!
निकलेगा परिणाम फिर,निश्चित ही विपरीत!!्
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मन को दृढ निर्मल रखो, कहता यह संसार ।
मन के जीते जीत हो, मन के हारे हार ।।
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सोचो इतना ही फकत , करना है सद काम ।
निकलेगा तब खुद ब खुद, सुखद-सुखद परिणाम ।।
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शायर है गुमनाम औ, गीतकार अज्ञात |
गायक गा गाकर जिन्हें, हुए विश्व विख्यात ॥
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लिया हुआ बेकार है, दिया नहीं जो ज्ञान |
होता है दुर्गन्धमय,......बासे नीर समान ॥
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बना सुदामा मैं प्रभो,..........खोजूं सत्य चरित्र |
कलियुग में भी श्याम सा, सीधा सच्चा मित्र ॥
कृष्ण सुदामा सी कहां,...... रही मित्रता आज |
कहाँ रहा किस मित्र का, मेरे दिल पर राज ॥
जो दुनिया के सामने, ...बनकर रहा कठोर !
उसका भी औलाद पर, कब चलता है जोर !!
कितना भी चिल्लाईए,..लाख मचाएं शोर!
कुदरत पर इन्सान का,कब चलता है जोर! !
बैठे हों जब हर तरफ,....इर्द गिर्द सब चोर!
सचमुच वहाँ प्रधान का,कब चलता है जोर !!
दरवाजे पर टांकिए,गुड़ी और इक आज !
नये साल का कीजिये, जोरों से आगाज !!
राष्ट्रवाद के नाम पर, करते वही कलेश!
जिन्हे नही है फिक्र ये,कहाँ खडा है देश!!
खाते हैं जिस थाल मे,..करें उसी मे छेद !
सुनकर ऐसी बात भी, होता रक्त सफ़ेद !!
मतलब के बाजार का , ............ये ही रहा उसूल !
मकसद तक झुक कर रहो, फिर जाओ सब भूल !!
थी कोसों की दूरियाँ, मगर लगी वो पास !
शायद कहते हैं इसे, प्यार भरा अहसास !!
रहा नहीं वो गाँव अब , ..रहे नहीं वे लोग !
मित्र आज देहात को, लगा शहर का रोग !!
रहा हमेशा वक्त का,.....अपने जो पाबंद !
जीवन मे उसने लिया,हर पल का आंनद !!
लिया लक्ष्य को आपने,दिल मे अगर उतार !
बना रहेगा आप मे, ........ऊर्जा का संचार !!
"चढ़े खिलौनों के जहाँ, ...आसमान में भाव !
निर्धन ने तैयार की, फिर कागज़ की नाव !!"
सच्चाई का इक दफा, लिया हाथ जो थाम !
उसका सारी उम्र फिर,.. पड़े चुकाना दाम !!
माता भ्रस्टाचार हो,...मंहगाई औलाद!
सत्ताधारी बाप तो,कौन सुने फरियाद !!
टनों लकडियाँ फूँक दी,किॆए कई अभिषेक !
नही लगाया आपने,.... वृक्ष कभी पर एक !!
अपने जीवन काल में, करो काम इक नेक !
जन्मदिवस पर तुम स्वयं ,वृक्ष लगाओ एक !!
सभी खड़े इक नाव पर, थाम झूठ का हाथ !
गलती का यह ठीकरा ,फोड़ें किसके माथ !!
किया अकारण जल अगर, इस पीढ़ी ने व्यर्थ !
कल होगा सूखा यहाँ,..... होगा बड़ा अनर्थ !!
सुनने मे अच्छा लगे, ..लगता मगर अजीब!
सिखलाए हमको अगर,शातिर ही तहजीब!!
मुख मे तो हरिओम है,मन मे लेकिन पाप !
फिर तो तेरा व्यर्थ है, हरिहर-हरिहर जाप !!
रखें नियंत्रण क्रोध पर, निर्मल रखें स्वभाव !
उपजेगा निश्चित नहीं, .जल्दी कभी तनाव !!
बुरा रोग संदेह का, छीने चैन करार !
मिट जाती हैं जिंदगी,पटती नही दरार !!
बिगडें सदा किसान के,......अनायास हालात !
पकी फसल पर जब कभी, गिर जाये बरसात !!
कहने को तो देश है,..अपना कृषक प्रधान!
क्यों मरते हैं भूख से,फिर भी यहाँ किसान! !
मेरी सच्ची बात का ,.......ऐसा मिला इनाम !
कुछ ने आँखे फेर ली, कुछ ने किया प्रणाम !!
कर्मों का हो आइना, सम्मुख सदा "रमेश"!
देने से पहले कहीं, .......कोई भी उपदेश !!
जहाँ दिलों के बीच में , बन रहे अनुराग !
वहां मुहब्बत के कभी, बुझते नहीं चिराग !!
उसने दरिया कर लिया,जीवन का हर पार !
संस्कारों की नाव पर, ..वो जो हुआ सवार !!
रोके से रुकते नहीं, कभी कभी जज्बात !
बनकर आँसू आँख से , बहती है हर बात !!
उठे दुआओं के लिए, माँ के हरदम हाथ !
रख न हो औलाद ने, चाहे उसको साथ !!
मेरे अपने आप सब, बन जाते हैं काम !
माँ के आशीर्वाद का, सदा सुखद परिणाम !!
शायर है गुमनाम औ,..... गीतकार अज्ञात !
गायक गा गाकर जिन्हें, हुए विश्व विख्यात !!
यादें ताजा कर गई,उनकी एक किताब !
पन्नों में ज्यों ही मिला, सूखा हुआ गुलाब !!
सीमा पर बंदूक जब, ...उगल रही हो आग !
पता नहीं किस नारि का, उजड़े वहां सुहाग !!
सुने लोभ वश आदमी,मतलब की हर बात !
सहे दुधारू गाय की, ....जैसे मालिक लात !!
उन्हें नसीहत दीजिए, उन्हें दीजिये ज्ञान !
बातों पर जो आपकी,देते हों कुछ ध्यान।!
करते थे मुझसे कभी, .वही न करते बात !
जाहिर जो मैंने किये, जब्त सभी जज्बात !!
मिले जहां से प्रेरणा, ..मिले जहाँ सद्ज्ञान !
करें सदा उस ठौर का, जीवन भर सम्मान !!
मेरे मुझको छोड़कर,चले गए सब ख़ास !
आई मेरी मुफ़लिसी,उन्हें न शायद रास !!
कैसे कोई किस तरह,इसका करे इलाज !
तोडें अपने ही अगर, .अपने बने रिवाज !!
कष्टों की आती रहे,... भले दिलों में बाढ़ !
रिश्ते वो उखड़े नहीं, हैं जो सहज प्रगाढ़ !!
राजनीति ने काम ये, किया बड़ा ही खूब !
सींची दोनों हाथ से, ..जातिवाद की दूब !!
सींचा रह रह कर सदा जातिवाद का वृक्ष !
राजनीति इस कृत्य में , .रही हमेशा दक्ष !!
अपनों पर चलने लगे, अपनों की तलवार !
क्या होगा उस देश का सोचो करो विचार !!
रिश्तों मे आता नही, जहाँ नजर विश्वास!
सम्बन्धो मे आ गई, निश्चित वहाँ खटास !!
आजादी के बाद से, दिन-दिन भड़की आग !
बाद छियासठ साल भी, नहीं सके हम जाग !!
ज्यों पाटो के बीच मे,पिसता रहे अनाज !
त्यों झूठो की भीड मे, सच्चे की आवाज !!
मासूमों के खून से,चले सियासी खेल !
गद्दारों ने देश को,पीछे दिया धकेल !!
आरक्षण की आग मे , रहे रोटियाँ सेक !
दिखें सियासत मे हमें,.ऐसे धूर्त अनेक !!
हिंसा से सुधरे नही, कभी मित्र हालात !
भूल गये इस दौर मे,हम शायद ये बात !!
अपने हाथों से करें, अपना ही नुकसान !
देश नही ये और का,सत्य समझ नादान !!
भरा हुआ है पेट पर, ...पड़े मांगनी भीख !
आरक्षण से एक ही, मिली हमें अब सीख !
सीधी सच्ची सोच हो,सहज सरल हों भाव !
जल्दी से फटके नही,..निश्चित वहां तनाव !!
मिला विरासत मे मुझे,....केवल आशीर्वाद !
मैने उसको रख लिया,उनका समझ प्रसाद!!
मिले देखने आजकल ,खबरें कई अजीब !
भूल गये इस दौर में, शायद हम तहजीब !!
चेहरे पर आती नही,. ..कभी झुर्रियाँ आप !
छिपी तजुर्बों की हमे,दिखे अनगिनत छाप !!
देशभक्ति पर पड़ रही, राजनीति की गाज !
नारे हिन्दुस्तान के, ......अर्थ नए पर आज !!
जुडे मीडिया से सदा,राजनीति के तार!
वही दिखाता है हमे,.जो चाहे सरकार !!
आलिंगन जग का किया, भरा नहीं पर जाम !
मातृभूमि की गोद में,..... थक पाया विश्राम !!
करें उसी से दोस्ती, ....रखें उसे ही पास !
जो गलती का आपको, करवाता आभास!!
ऐसों को रखना नहीं, तुम अपना हमराज !
जो गलती को आपकी, करें नजर अंदाज !!
बढी गरीबी देश मे,....दो का दूना चार!
कारण इसका मूल है,बढता भ्रस्टाचार !!
इक दूजे पर कर रहे,सभी सियासी वार !
लोकतंत्र का अर्थ है,जनता का उपकार !!
सेवा करने को चले,..बनकर सेवादार !
राजनीति का कर रहे,वो देखो व्यापार !!
जिनके ऊपर देश को,,कभी बहुत था नाज़ !
देशद्रोह का कर रहे,....वही समर्थन आज !!
गीता का अध्यन किया,पढ़ें सभी हैं वेद !
राधा कृष्णा में कहीं,आया नजर न भेद !!
वादा इसके साथ कर, थामा उसका हाथ !
कैसे होगा पार यूं , जीवन का यह पाथ !
वादों की दहलीज पर,रखना कदम सम्हाल !
यहाँ गिरा इक बार जो, उठा नही बहु साल !!
खुश्बू है ये प्रेम की, ....या समझूँ उपहार !
गुच्छे के हर फूल में, लिखा हुआ है प्यार !!
किसे कहें ये चोर है, कहें किसे हम नेक!
अपनी अपनी रोटियाँ,सभी रहे जब सेक !!
मंदिर सी खुश्बू मिले,मृदल गंध की टेर!
जब बासन्ती धूप मे,खिलता फूल कनेर! !
नही बढेगा मानिए,......ज्यादा कभी कलेश !
घर का झगडा रह गया,घर मे अगर "रमेश" !!
दिया अंगूठा द्रोण को, ....एकलव्य ने काट !
रहे न ऐसे शिष्य अब, जिनका ह्रदय विराट!!
हुआ सुदामा सा कभी,,कब किसका सत्कार!
कान्हा जैसा दूसरा,.....हुआ नही फिर यार!
हमने मिलकर कर दिया, हरियाली का अंत !
धीरे धीरे रो रहा ,........ देखो आज बसंत !!
कहाँ पुरानी बात है ,गुजरे हैं कुछ साल !
रोटी के सह मुफ्त में,मिल जाती थी दाल !!
किसको अपना हम कहें,कहें किसे अब गैर !
अपनो के अपने अगर,......लगे खींचने पैर !!
नैतिकता का है नहीं, आज जरा भी दाम !
भारत में यह हो रही, शनै शनै बदनाम !!
इत देखूं किरदार या, उत देखूं परिवार !
दोनों ही ज़िंदा रहें, ....मेरे मन के द्वार !!
होते है जब साथ मे,चिड़िया तितली फूल !
पडें दिखाई उस समय,तीनो ही मशगूल !!
चाहे जितना कीजिए, इसका आप इलाज !
लौटे नहीं जुबान से,निकलें जो अलफ़ाज़ !!
सिल लोढी को कर दिया, मिक्सर ने बरबाद !
चटनी में आता नहीं,.......पहले जैसा स्वाद !!
हुआ नहाना ओस में, तेरा जब जब रात !
कोहरे में लिपटी मिली, तब तब सर्द प्रभात !!
चाहे धन्ना सेठ हो,...........चाहे रहे गरीब !
हुआ सभी को एक सा,यारों कफन नसीब !!
सच को यदि सच के लिये, देनी पडे दलील!
तो होगा सन्सार में, ....निश्चय सत्य जलील!|
पत्रकार करता सदा ,...विज्ञापन का काम !!
जनहित की पहचान है,साहित्यिक संग्राम !!
उडो भले आकाश मे,..बन कर के इक बाज!
मगर न करना भूमि को, कभी नजर अंदाज !!
खर-दूषण प्यारा लगे,...लगे विभीषण नाग!
दिल मे जिसके स्वार्थ की,लगी हुई हो आग!!
विधि -विरुद्ध अभिमान से, किया हुआ हर काम !
कर देगा निश्चित तुम्हे, ....... एक रोज बदनाम !!
दहशतगर्दों का कभी,..हुआ नहीं ईमान !
कैसे समझे हम इन्हें, मानव की संतान !!
बना हुआ है पाक मे,भष्मासुर आंतक!
लगा उसे ही मारने,.बार-बार वो डंक!!
कितने जख्मी हो गये,...कितने मरे अबोध!
करता हूंँ मै आज फिर,इसका कडा विरोध!!
सच्चाई की पीठ पर,जो भी हुआ सवार!
पडा झेलना कष्ट का,उनको सदा प्रहार !!
उपजें नहीं खयाल में,.. वहाँ विषैले बीज !
संस्कार की ली पहन,जिसने जहाँ कमीज !!
राजनीति का एक ही, लगता अब तो काम !
इक दूजे पर थोपना,.....अपने पाप तमाम !!
गलती का जो आपकी,रखे हमेशा ध्यान!
वही हितैषी आपका,सत्य समझ इंसान!!
भूल गए मेरे खुदा,.....केवल एक लकीर !
खुल जाती जिससे सुना, लोगों की तकदीर !!
कथित सुखनवर-मीडिया,अध्यापक ये तीन !
ये तीनों इस दौर मे, .....दिखें स्वार्थ मे लीन!!
पाखंडी समझे नही, ना ही करे विचार !
चढे न हांडी काठ की,चूल्हे पर दो बार!!
दिल के जैसा आज तक, नजर न आया खेत !
कुछ भी बो कर देख लो, मिलता सूद समेत !!